मंजिल पर नज़र
शिकस्त खाई हुई हर जंग जीतने का हुनर रखते है
कँटीले रास्तो में भी हम मंजिल पर नज़र रखते है
ये वक़्त है,समुन्दरी तूफान सा बस बढ़ता जाता है
हम इसके लहरों की धार मोड़ने का असर रखते है
ये बाजियों का खेल मोड़ नही सकते मेरे रास्ते को
हम तेरी बिसात के सारे मोहरों की खबर रखते है
जिसकी खूबसूरती पे आज तुम इतराते फिरते हो
अपनी जेब में हम इस जैसे दो चार शहर रखते है
यूँ जंग के आदी नही पर जो करनी पड़ जाए,फिर
सीने में तलवार या पैरो में दुश्मन का सर रखते है
अपना अपना हुनर है अपना अपना ही हथियार है
जंगे मैदान में तुम तलवार रखो हम जिगर रखते है
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