राधा रानी

घाव एक भी नही दिखते उनके पर पूरी तरह से वो घायल है
जब उनकी आंखें बरसती है, तो साथ बरसते सारे बादल है
बिरह रस में सनी राधिका को कुछ और नज़र नही आये
वो तो कान्हा की पगली है, बस कान्हा के लिए ही पागल है


जिसके रूप की रचना रविलोचन के सांवले से रंग में रची 
जिसके रगों में कान्हा बसे जो कान्हा के रग रग में है बसी
वो कान्हा के दिल मे है, और कान्हा से भी ज्यादा पावन है
वो तो कान्हा की पगली है,बस कान्हा के लिए ही पागल है


यमुना के तट पर भटक भटक जो कान्हा का नाम पुकारे
गाहे बगाहे  निश दिन  जो अपने मनोहर  की राह निहारे
पागल प्रेम में प्रियतम के उन्हें पुकारती पगली की पायल है
वो तो कान्हा की पगली है,बस कान्हा के लिए ही पागल है


बिरह की बेबसी बस बावरे नैनो से बूंद बूंद बन के बरस रही
वो त्याग तपस्या की देवी बन तारणहार के लिए है तरस रही
कान्हा के कमलरज से बने, राधा के  कारे नैनो के काजल है
वो तो कान्हा की पगली है,बस कान्हा के लिए ही पागल है


जैसी है राधिका, वैसी त्याग  की मूरत  कोई दूजी ना होगी
जैसी है कान्हा के  राधा की वैसी सूरत कोई दूजी ना होगी
जिसके आंखों में आंशू कान्हा के दिल मे मचा देती हलचल है
वो तो कान्हा की पगली है,बस कान्हा के लिए ही पागल है


प्रेम पियासी पद्मनाभ को प्रेम का प्याला पिलाए रही है
बिरह में डूबी प्रेम की पंजीरी कान्हा को खिलाएं रही है
प्रीत का पावन प्रेम लिए कान्हा को खोजती वो पल-पल है 
वो तो कान्हा की पगली है,बस कान्हा के लिए ही पागल है

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