गम के जमींदार

उनके दिए हुए ग़म की दौलत लेके हम जमींदार हो गए
रुसवा कुछ ऐसे हुए की शेरो शायरी के फनकार हो गए

जो नज़र भर के आपने देखा था मुझको कल शाम में
बस तभी दिल बड़ी जोर से धड़का और हम बीमार हो गए

जब तलक ये चेहरा हिजाब में था मेरी सांसे चलती रही 
आपने इस रुख से नकाब जो हटाया हम निसार हो गये

आपका मुखड़ा देख आसमान का चाँद भी शरमा गया
आपकी चूड़ियों की खनखन से वीराने गुलज़ार हो गए


मौसिकी थी आशिकी थी और हम तबियत से अमीर थे
एक बार दिल्लगी की शौक लगी और हम बेकार हो गए

बेमोल थे जब तक इनकी हर एक बूंद में सच्चाई घुली थी
जब से कीमत लगी आपके ये आंशू भी अदाकार हो गए


रात थी, आप थे, और ग़म के हिस्से में भी खुशियां रही
सवेरे जो ख्वाब टूटा, ग़म खुशियों के हिस्सेदार हो गए

जब तक बाजार में नही आये,वतनपरस्ती के खूब नारे लगाए
फिर कीमत मिली और सारे रहनुमा मुल्क के गद्दार हो गए

रात के इंतेज़ार में सुबह से चिरागों को जलाए रखते है
आपको ख्वाबो में देखने लिए हम इतना बेकरार हो गए


बरगलाने बहकाने की आदत ने वो करिश्मा कर डाला
की अब फकीरो के आज बादशाहों से दरबार हो गए

सिक्को की खनक से अनजान फकीरी धुनी रमाते रहे
एक बार जो खनक सुनी मंदिर मस्जिद बाजार हो गए

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