रेगिस्तानी गुलाब
मेरी इन आँखों मे मोहब्बत के ख्वाब खोजते हो
अजीब पागल हो रेगिस्तान में गुलाब खोजते हो
बड़े बेखबर सौदागर मालूम पड़ते हो तुम भइया
मुनीम भगा के बहीखातों का हिसाब खोजते हो
है इतनी चमक उसमे की आंखे चौधिया जाएंगी
कहां हाथों पर दिया लेकर आफताब खोजते हो
वो तौर वो दौर वो सिरमौर अब सब बदल गए है
जो खत्म हो गया,क्यो तुम वो रुआब खोजते हो
बड़े बड़े आलिम भी जिसे रखने से कतराते है
तुम अनपढों की बस्ती में वो किताब खोजते हो
ये सरकारी कछुए है सुस्ता सुस्ता कर चलते है
और तुम इनमें खरगोशों सा सिताब खोजते हो
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