पत्थरो की सरकार
जहाँ तक मैं देखता हूँ ,बस पत्थरों के ही नज़ारे है
लगता है यहां पर इंसान नही बुतो की सरकारें है
जमीर ईमान खुदाई सब खुले में आम बिक रहे है
यहाँ पर इंसा ही नही इंसानियत की भी बाजारें है
सब खामोश हुए खड़े है सभी के मुह पर ताले है
समुंदर के तूफान में ये सब कागज की पतवारें है
जुबान को खरीद ली कलमों को गुलाम बनाया है
खिलाफत करने वालों की भी गर्दनों पे तलवारे हैं
यहाँ चोर लुटेरों माफियो के लिए आंखे बिछी है
और शरीफ ईमानदारों को राहो में बस अंगारे है
यहाँ के मंदिरों में राक्षसो को बैठा दिया गया है
और यहां देवता सारे अपनी किस्मत के मारे है
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