आशियाना उजाड़ने वाला फकीर
इस आवाम की जो ये डरने की आदत है
सुनो वजीरों सिर्फ यही तुम्हारी ताकत है
जिस दिन ये डर हद से जादा गुज़र गया
बस फिर तो तुम्हारी शामत ही शामत है
जाने कितनों के आशियाने उजाड़ गयी
ऐ फकीर तेरी उस फ़कीरी पर लानत है
जो ख्वाब लिए तानाशाहों ने बर्बादी की
सब समझता हूँ तेरी वैसी ही हसरत है
सच झूठ में फर्क करना हमे भी आता है
न सोच कि जो तूने कहा वही सदाकत है
जो तेरे तख्त के नीचे हलचल हो रही हैं
ये उसकी जमीन खिसकने की आहट है
ये जो खामोश तुम्हारे दरवाजे पे बैठी है
कुछ और नही आने ये वाली आफत है
वजीर तू जरा संभल संभल कर चलना
अब तो इक्के के आने की सुगबुगाहट है
जिसपे तू इतनी शान से बैठा है,ये तख्त
तीमारदारी है न कि तख्ते बादशाहत है
जो टोपी पहने तिलक लगाएं फिरते हो
ये सब मजहब नही है,सिर्फ सियासत है
ये जितने पेड़ आज तुमको फल दे रहे है
ये तुम्हारी नही मेरे पुरखो की विरासत है
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