तुम्हारे दिल मे
कही और नही मैं तो बस तुम्हारे दिल मे रहना चाहता हूँ
अनपढ़ हूँ पर तुम्हारे बदन की लिखवाट पढ़ना चाहता हूँ
लेके तुम्हे आगोश मे तुम्हारी खुशबू से महकना चाहता हूँ
इन नशीले होंठो की चखकर मैं भी तो बहकना चाहता हूँ
तेरी चूड़ियों की खनक सुनकर मैं भी खनखना चाहता हूँ
माथे पर तुम्हारे बिंदिया बनके मैं बस चमकना चाहता हूँ
ग़ज़ल की इस मत्तला-ए-सानी सी खूबसूरती है तुममे
मैं भी तो इस ग़ज़ल के कुछ काफिये चखना चाहता हूँ
ग़ालिब ने फरमाया है की, इश्क़ आग की एक दरिया है
और मैं इस आग की दरिया में एकबार उतरना चाहता हूँ
अपना ये आशियाना तो अब पुराना लगने लगा है मुझको
मैं तो आपके दिल मे बने नए घर मे अब रहना चाहता हूँ
कल का इंतेज़ार करने भर की मेरी सबर नही है मुझमे
तुमसे दिल की सारी बातें मैं तो आज ही कहना चाहता हूँ
घूँघटे में छुपे इस चाँद को आज को रात निकलने तो दो
चाँद से मुखड़े को मैं अपनी आंखों में समेटना चाहता हूँ
पूरे मैखाने सा नशा समाया है तुम्हारे बदन के जर्रे जर्रे में
मैं तुम्हारे इस मैखाने से चांदनी रात में लिपटना चाहता हूँ
तुम्हारे हुस्न के ऊंचाइयों की रानाईयां पर्वतों से ऊंची है
मैं तुम्हारी इन ऊँचाइयों पर सारी उमर चढ़ना चाहता हूँ
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