मुसाफिर
जो मेरे अपने थे वो सारे एक एक कर बेगाने बनते रहे
साथ चलने वाले बाकी मुसाफिरो के दीवाने बनते रहे
बस एक यही इत्तेफाक मेरे साथ जिंदगी भर होता रहा
ईंटे आई मेरे घर की और गैरो के आशियाने बनते रहे
हमने तो किसी को आंख उठाकर भी नही देखा कभी
और शहर मे हमारी बत्तमीजी के अफसाने बनते रहे
उसकी चमक में इतने खोए की हश्र की खबर ना लगी
शमा सबको जलाती रही,और सब परवाने जलते रहे
पीना तो दूर, एक बूंद शराब की कभी छुआ तक नही
और सारे शहर भर में हमारे नाम से मैखाने खुलते रहे
जब प्यास जादा बढ़ने लगी रिन्दों ने मैखाने खोल दिये
बोतल खाली हो गयी फिर भी उनके पैमाने बनते रहे
सरकार मेरे,जब से आप हमारे इस शहर के रहनुमा बने है
कब्रिस्तान गुलज़ार होने लगे और शहर वीराने बनते रहे
लगी जो वो आग भी आपकी थी,तेल भी आपने ही डाला
आपही शहर जलाते रहे और आप ही अंजाने बनते रहे
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