गुलशन कि खुशबू
कभी इन फूलों से तो, कभी मेरे बदन से आती है
तेरे जिस्म की खुशबू,यहाँ हर गुलशन से आती है
मैं उस ठंडी हवा का ओढ़ना बनाकर सो जाता हूँ
वही जो मेरे घर बह कर तुम्हारे बदन से आती है
लोग उसको पढ़ कर ही तुम्हारे दीवाने हो जाते है
जो गीत तुम्हारी तारीफ में मेरी कलम से आती है
इसके कानों में पड़ते ही मेरा दिल मचल जाता है
तुम्हारे पाजेब की ये जो आवाज छम से आती है
दुनिया जल जाने पर भी मुझे वैसी नही आएगी
जैसी बेचैनी, तुम्हारे माथे पर शिकन से आती है
क्या करूँ मैं इसका ये, छुपाए छुपती ही नही है
जो तेरे इन होंठो की लाली मेरे पैरहन पे आती है
जिधर जाता हूँ, कमबख्त ये उधर से ही आती है,
तेरी महक कभी उत्तर तो कभी दक्खन से आती है
ये जो मेरी शख़्सियत इस ग़ज़ल में झलक रही है
ये कलमकारी नही ईमानदारी के फ़न से आती है
दुनियां में तो उन कसीदों का कोई सानी ही नही
जो तुम्हारी तारीफ में मेरी इस सुखन से आती है
फरिश्ते भी जिसको देखकर ही दीवाना बन जाये
तुम्हारे जैसी खूबसूरती खुदा के जतन से आती है
अपनी हो जाती है वो बयार जो गगन से आती है
छोटी सी कोई चिड़िया जब मेरे दकन से आती है
दूर रहकर भी गाँव की मिट्टी का एहसास देती है
परदेशियों की चिट्ठी जब उनके वतन से आती है
अब रुसवा कर रही है ये सारे जमाने मे मुझको
जो बातें लोगो की तुम्हारे चाल चलन से आती है
Comments
Post a Comment