लाल इंकलाब

कोरे कागज पर  लाल स्याही से इंकलाब लिखा है
कलम जो उठाया मैंने सुलगता आफताब लिखा है

रंग रचना, रेशम ये सब तो मुझे रास ही नही आये
जब भी लिखा कलम से मैंने सिर्फ आग लिखा है

बादशाहों की खुशामद करना इसके बस की नही
इस कलम ने तो बस फकीरों का रुबाब लिखा है

आगे बढ़के हरवक़्त सत्ताधीशों से सवाल पूछा है
इस कलम से मैंने तानाशाहो को जवाब लिखा है

औरों के जैसे सुल्तानों की तारीफों के कसीदे नही
मैंने सबके दिलों में जम्हूरियत का ख्वाब लिखा है

कलम से जीहज़ूरी और बुजदिली जैसी ठंडी नही
खिलाफत और जिंदादिली का एक ताब लिखा है



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