आंखों के नूर
मोहब्बत के हज़ारो नूर तुम्हारी इन आँखों से बरसते है
इनमें डूबने वाले आशिक तुम्हारी गलियों से गुजरते है
सारा वक़्त इन्हें नक़ाबो में आप क्यो छुपाए फिरते हो
हमें भी दिखाओ जो डिंपल तुम्हारे गालों पर उभरते है
तुम्हारे आने के बाद गुलो की खुशबू भी बढ़ गयी है
बगीचों के ये फूल भी तुम्हारी एक छुवन से महकते है
फरिश्ते भी अपनी सलामती की दुआ मांगने लगते है
और कुवारों के दिल तेरे ठोड़ी वाले तिल पे अटकते है
तुम जो उठती हो तो सारी सोई फ़िज़ाये भी जागती है
ये सारे नज़ारे भी तुम्हारी बस एक नज़र को तरसते है
आसमान का ये सूरज भी तुम्हारे इशारे पर उगता है
और हवा के ठंडे झोंके भी तुम्हारे साथ साथ चलते है
आसमां की सारी परिया भी तुम्हारे हुस्न से जलती है
तुम्हारे दीदार को जन्नत के फरिश्ते जमीं पर उतरते है
इनकी हवाओ में तेरे एहसास की खुश्बू घुल जाती है
और ये मौसम ये, नदिया तुम्हे ही देखकर संवरते है
शायरों की शायरियां भी तुम्हारे आगे फीकी लगती है
चाँद की चांदनी जन्नत की परी ये तेरे आगे कहा ठहरते है
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