इकरार
वक़्त तो पास था पर इंतेज़ार कर नही पाए
जाने वफ़ा हम तुझपे ऐतबार कर नही पाये
कई मर्तबा दिल ये ने कहा कि कह दूं तुमसे
पर जाने क्यो हम ही इकरार कर नही पाए
जिस इश्क़ में तुम जमाने के खतावार बने
हम खुद को उसमे गुनहगार कर नही पाए
इशारा तो तुमने सरेआम किया ही था मुझे
मेरी मजबूरी थी जो इजहार कर नही पाए
एक हाँ काफी था दुनिया से चुराने के लिए
पर तुम्हारी आँखों पे ऐतबार कर नही पाए
कोई शर्त नही थी और ना कोई बंदिश थी
फिर भी तेरे दिल से करार कर नही पाए
वादा था एक दूजे पे सब कुछ लुटा देने का
पर हम ही तुमपे कुछ निशार कर नही पाए
मंजिल तक साथ चलने की बात थी हमारी
पर मुश्किलों से हम दो चार कर नही पाए
कबूल करके तुम जहान में रुसवा हो गए
पर इश्क में हम वो यलगार कर नही पाए
जिस तरह तुम इश्क़ में सब कुछ भूला बैठी
उस तरह मैं खुद को बीमार कर नही पाया
मेरी खातिर तूने सबको भुला दिया,पर हम
दिल्लगी की आदत में सुधार कर नही पाये
सलामत रहे तुम्हारी आँखों का वो काजल
जिसके कैद से खुद को फरार कर नही पाए
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