उम्मीद का फूल

मैंने जिसे  दिल से चाहा वो मुझे मिल ही नही पाया
उम्मीद का वो फूल मेरी डाल पे खिल ही नही पाया

जो तुमने मुझको प्यार के  बदले तोहफे में  दिया है
जमाने भर में कोई उस जख्म को सिल ही नही पाया

तुम्हारे सारे बदन की लिखावट भी मैंने खूब पढ़ी है
बस इस किताब में होंठो का का तिल ही नही पाया

लाख कोसिसे  कर ली हमने उसे पिघलाने की, पर
पत्थर सा उसका दिल रत्ती भर  हिल भी नही पाया

सारे जमाने की दौलत होके भी मैं गरीब हूँ क्योकि
सब कुछ पाया बस एक उसका दिल ही नहीं पाया


लाखों  परते छुपी हुई है राज बनके तुम्हारे दिल मे
बेपनाह प्यार इसका कोई तह छिल  भी नही पाया

मदहोशी में हमने तो  अपना सब कुछ  खोवा दिया
जब होश  में आया तब  अपनी ज़िल भी नही पाया

अपनो को गवा दिया मैंने शहर की दौलत कमाने में
बदनसीब मरने पर मेरे गाँव का गिल भी नही मिला

दिल्लगी करने वाले तो मुझे इस जहां में बहुत मिले 
बड़े यार भी मिले पर एक अहले दिल ही नही पाया


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