शायर कहो या दीवाना
शायर कहो या दीवाना कहो दोनो ही नाम मंजूर है
क्योकि ग़ज़ल और इश्क़ दोनो ही मुझमे भरपूर है
ये किताबे और वो लड़की दोनो ही मेरे महबूब है
और मेरे दोनो के दोनों महबूब बड़े ही चश्मेबद्दूर है
इसी कलम से मैंने जाने कितने इंकलाब लिखे है
और मेरी इसी कलम में मोहब्बत भी भरपूर है
ये कलम जब भी चली सच की आवाज उठाती है
और इसी कलम से चढ़ता मोहब्बत का सुरूर है
जब चली नश्लो को गुलामी से आज़ाद कराया है
इसके आगे सब सलाखें सब जंजीरे चकनाचूर है
हर सच निकाल कर एक कागज पे लिख देती है
मेरी कलम से तुम्हारे झूठ और फरेब कोषों दूर है
इसे किसी और कि कोई परवाह ही नही रहती है
मेरी कलम, ग़ज़ल और इंकलाब के नशे में चूर है
मेरे किताब की गज़ले तो अक्सर चुप ही रहती है
और मेरे महबूब की मोहब्बत यहाँ बड़ी मशहूर है
अगर ये जिंदगी एक खूबसूरत दुल्हन सी है मेरी
तो मेरी ये ग़ज़ल उस दुल्हन के माथे का सिंदूर है
ग़ज़ल और मोहब्बत दोनो ही यहाँ बेआबरू हुई
और दोनों को रुसवा करने का जमाने में दस्तूर है
मत पूछ क्या फर्क है मेरे लिए इन दोनों रश्कों में
दोनो में मै दीवाना हूँ दोनो के लिए इश्क़ मशरुर है
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