तलाश मे
एक जिंदादिल जिंदगी की चाह में,
ना जाने बढ़ चला मैं किस राह पे
बाग जो सजाए थे सब उजड़ गए
मेरे थे जो अपने सब बिछड़ गए
जिस फूल की चाह थी मेरी डाल पर खिल ना सका
जिसको भी अपना माना वो मुझको मिल ना सका
तुम्हारे ख्वाबो की एक शाल मुझसे बुनाई ना गयी
बहुत चाहा पर दिल की सदा तुमसे सुनाई न गयी
उसने मेरे चाहत की खबर ना की ,
मैंने भी अंजाम की फिकर ना की
उसकी बेफिक्री मैं देखता भी कैसे
उसके खामियों पे मेरी नजर न थी
मेरे ख्वाबो ख्याल पे जिसकी यादों का सुरूर था
जिसकी हर बात मानने को मेरा दिल मजबूर था
आज सफर में अकेला हुआ तो समझ आया कि
वो साथी मेरे पास तो था पर मुझसे बहुत दूर था
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