मोहब्बत में कुछ नही बचता है
जो होता नही अपने पास यहां वो भी बिकता है
मोहब्बत के इस बाजार में कहाँ कुछ बचता है
गुफ्तगू का ये अंदाज बहुत ही निराला है उसका
मुझसे सब सुनता है पर खुद कुछ नही कहता है
सोचा था मोहब्बत को जमाने से बचा लेंगे, पर
ये आंखों की जुबाँ है इसमें कहाँ कुछ छुपता है
कैसी सौदागरी है और कैसी गणित है मोहब्बत
इसमें जितना जोड़ो मुनाफा उतना ही घटता है
कहा था बराबरी का सौदा होगा इस बाजार मे
आप सो जाती हो,इश्क़ मेरी आंखों में जगता है
उसकी दोनों आँखों पर सब कुछ हार बैठा हूँ मैं
फिर भी उनसे नज़रें मिलाने को दिल तरसता है
एक सौदागर से मुलाकात मेरी भी हुई है,जिसने
मेरा तो सब ले लिया पर मुझे कुछ नही देता है
बहुत ही घाटे का पड़ा है ये दिलों की लेन देन हमे
मुनाफे को क्या बोलें इसमें खर्च भी नही बचता है
बदस्तूर जारी रहेगा मंजिल का सफरनामा मेरा
ठोकर खाने से ये जिद्दी कदम कहाँ रुकता है
ये सहारा लेने वालो के भरोसे पर ना रहना कभी
ये दस्तूर है जो हाथ को थामो वही पैर काटता है
तुम्हारे शहर का रिवाज हमे उल्टा जान पड़ता है
आगवाला पानी बुझाता है,पानीवाला आग से जलता है
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