मोहब्बत में आदमीं बेकार हो जाता है
कोई शायर बन जाता है तो कोई मौसिकार हो जाता है
जब दिल कहीं लग जाये तो आदमी बेकार हो जाता है।
लाख ठानो की अब ये दिल नहीं लगाएंगे किसी से भी
पर जो कोई नज़र भर के देख ले तो प्यार हो जाता है।
भवरें सी फिदरत है इसकी ये हर कली पर मंडराता है
जिसने भी हँस कर देखा, उसी से इज़हार हो जाता है।
ये इश्क़ की पहेली भी बड़ी तिलिस्म सी जान पड़ती है
जिसने भी इसे बूझी वो तैर के दरिया पार हो जाता है।
गुमनामी घेर लेती है अगर मोहब्बत नाकाम हो जाये
जो इश्क़ मुकम्मल हुआ तो इंसान फनकार हो जाता है।
हम वो शख्स है जहाँ बैठ जाये वहीं दरबार हो जाता है
और हमारा हर लफ्ज सल्तनत का मेयार हो जाता है
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