मुमकिन है भरम मिल जाये
चाहे कोई सितम मिले या फिर कोई कसम मिल जाये
पर जहाँ दिल नही मिलता, मुश्किल है कदम मिल जाये
वो और होंगे जो मिलते है अपने दुश्मनों से हँस बोलके
जबतक ये दिल न मिले नामुमकिन है की हम मिल जाये
ये इश्क़ विश्क की जंग बहुत मुश्किल लगती है ठाकुर
फिर भी लड़ लो शायद तुम्हे तुम्हारा हमदम मिल जाये
थोड़ी गहराई से पढ़ना तुम मेरे लिखे ग़ज़लों के शेर को
मुमकिन है इसमें तुमको कोई नया जखम मिल जाये
फिर से कोई दर्द मिले फिर से कोई जमजम मिल जाये
फिर ये जख्म हरे हों, फिर से इनको मरहम मिल जाये
मुमिकन है तेरे इश्क़ से आगे भी कोई भरम मिल जाये
खुद को खुदा कहने का तुझे भी कोई वहम मिल जाये
मैं उसका नाम खुदा की तसवी में भी पढ़ना चाहता हूँ
अब इसके लिए जन्नत मिले या जहन्नम मिल जाये
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