साहेब की दलील
तुम्हारी हर दलील पर अब सिर्फ अफसोस करता हूँ
कोई दिन मुकर्रर नही किया ये तो हर रोज करता हूँ
ये तो तुम्हारे ही फकीरी का असर लगता है मुझपर
दिन के उजाले में भी रंगीन तारों की खोज करता हूँ
देखा देखी हमने भी कुछ हुनर सीख ही लिया तुमसे
एक वादे पर जीने वाला मैं अब हर रोज मुकरता हूँ
हर दिन के रंगों के साथ तुम्हारे कपड़े भी बदलते है
मैं भी इसी बहुरंगी अंदाज में जलवाफरोज करता हूँ
तुम्हारे झूठ बोलने का ये अंदाज तो बड़ा निराला है
ये झूठ बोलने का कारोबार मैं भी हर रोज करता हूं
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