प्रतिकार
न रार से न प्रतिकार से डरा नही हूँ मैं हार से
विजय कीर्ति गर्जना हूँ कह दो सारे संसार से
है वो शक्ति पास है वो आत्मबल भी मेरे साथ
परास्त कर दूँ शत्रुदल को एक बस हुंकार से
मुस्किले तो आ रही हज़ार
सभी को कर रहा मै पार
पग नई राहों में बढ़ा कर
बन रहा मैं जीत का श्रृंगार
यश प्रसिद्धि आ रही है आज शत्रु के द्वार से
न रार से न प्रतिकार से डरा नही हूँ मैं हार से
शत्रु बल से मैं कभी डरा नही
भय से ये मन कभी भरा नही
छल नीति से यद्ध जीतने का
कभी भी काम मैने करा नही
भूमि छोड़ भागता नही मैं शत्रु की ललकार से
न रार से न प्रतिकार से डरा नही हूँ मैं हार से
दृढ़ इच्छा है ये टूटती नही
जीत की आदत छूटती नही
क्रोधित हृदय की ज्वालामुखी
होकर आवेशित फूटती यही
गिर नही रहा धरा पर भी मैं शत्रु के प्रहार से
न रार से न प्रतिकार से डरा नही हूँ मैं हार से
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