कारवाँ

अंधेरा जब छटाँ तो सीने से मेरे ये दर्दे बयाँ निकला
दिल तो पहले से ही जला था आज ये धुंआ निकला

आंखों से अरमान भी आंशू बन जहाँ तहाँ निकला
दिल भी उसी ओर गया जिधर तेरा कारवां निकला

कुछ मस्जिदों में निकला तो कुछ मैखानो में निकला
क्या बताऊ मैं तुम्हे की मेरा दम कहाँ कहाँ निकला

एक एक अरमान पर सौ सौ खुशियां वार दिया था 
हर एक खुशी पर घुट घुट कर मेरा अरमां निकला

फलक पर बैठा कर तुझे सब कुछ तुझ पर वारा था
खुदा सोच कर पूजा था तुझे पर तू भी इंसा निकला

इश्क़ में ये सूरते हाल है कि खुद की भी खबर नही
ये खामोशी साधे बैठा है दिल हमारा बेजुबाँ निकला

पहले दिल गया फिर ये हँसी गयी फिर तू चली गयी
कभी घर था तेरा वो दिल मेरा खाली मकां निकला

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