महारास
मोहन की मोहनी मुस्कान मार रही तो
राधा रानी रासलीला के रस से नहाती है
झूम झूम नाच रही सारी गोपियां ब्रज के
लाल लाल चेहरे पर लालिमा लुभाती है
निधि वन की नन्ही सी रात में नाच नाच
गोपी सारी जीवन का मोल तो कमाती है
प्रेम की पतित प्यास पूर रही गोपियों की
बन के बवरियां बिहारी को भी नचाती है
राधा के संग नाच रहे कान्हा ऐसे जैसे
सावन के मौसम में मोर पंख फैलाते हो
निधिवन मोहक अस लग रहा है जस की
रजनीपति खुद आकर चांदनी सजाते हो
चेहरे की लालिमा बिखर रही ऐसे जैसे
सूरज की लाली सरोवर में बिखर जाती हो
आंखों की चमक अस चमक रही राधा की
जैसे ढेर सारे सूरज एक साथ चले आते हो
ऋषियों के रूप में दिख रही गोपियां
गोपी रूप में मुनि को नचाते है कान्हा
हज़ारो रूप ले गोपीयों संग नाच रहे
महारास का वचन निभाते है कान्हा
महारास के रास में भक्ति रस बरसा
गोपियों के हृदय मे समाते है कान्हा
बावली हो नाच रही जिस धुन में ऐसी
मुरली की मोहक तान बजाते है कान्हा
दुख बिलास का सब त्याग के गोकुल में
कान्हा के संग पावन रास रचाती है राधा
परमेश्वर की पावन प्रीत का पान कर खुद
प्रेम प्रणेता को प्रेम प्याला पिलाती है राधा
बार बार झांक रही है वो मोहन के नैनो में
थोड़ी मुस्काती है तो थोड़ी लजाती है राधा
माथे पर बिंदिया तो कानो में झुमका पहन
गोपियों में सभी से सुंदर सुहाती है राधा
बांस की बाँसुरिया से बेसुध बन कर
ब्रज में प्रेम की बारिस बरसाती है राधा
कान्हा के नैनन की शीतलता को ओढ़ कर
कान्हा के हृदय में निज घर बसाती है राधा
बांध पगड़िया और मोरपंख माथे पर खुद से
राधिका से साँवला कान्हा बन जाती है राधा
साड़ी पहना लाल लालिमा लगा चेहरे पर
श्याम सलोने कृष्ण को राधा बनाती है राधा
महारास के रास की रचना में रम कर
रास ऋतु के रंग में रंगाते है कान्हा
परम पावन प्रेम को प्रसाद बनाकर
प्रिय को पल पल पिलाते है कान्हा
मोहक से मुखड़े से मार कर सबको
मंद मंद मुस्कान में मुस्काते है कान्हा
आकाश के अनंत अच्छादित प्रभा को
महारास की रात में सजाते है कान्हा
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