शहर
इस शहर की एक एक शख्सियत का हिसाब कर डालूंगा
ये जो शरीफ बने घूम रहे है, सबको बेनकाब कर डालूंगा
वैसे तो अमन का परचम लहराये रहता हूँ इस जहान में
पर इस मिट्टी को छुआ तो कत्लेआम बेहिसाब कर डालूंग
खुद के हाथों से पीने पर इन पैमानों में नशा नही मिलता
शाकी जो पिलाये तो आबे जमजम भी शराब कर डालूंगा
कैद है कई आतिश और सयाल हमारे इस सीने के भीतर
जो तुने इस दिल से खेला तो जलाकर बर्बाद कर डालूंगा
आदत छोड़ दो तुम अपने दिलो में सारे राज छुपाने के
जो पढ़ने पर आया तो चेहरे को भी किताब कर डालूंगा
जो नापसंद हो गया तुम मुझको सरेआम तुम्हे नकारूँगा
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