सुखन

हज़ारो रातें जलायी जाती है तब ग़ज़ल एक हुनर बनती है
सौ कलमें जब टूटती है तब एक मुकम्मल सुखन बनती है

जब इश्क़ की बीमारी सर चढ़ कर मन की लगन बनती है
जुदाई की घड़ियां तब जाके मोहब्बत की मिलन बनती है

हज़ारो अश्को को बटोर कर गमो की सियाही में डुबोते है
फिर मोहब्बत का शेर लिखने के लिए एक कलम बनती है

ना किसी का इश्क़ बनती है न किसी की जलन  बनती है
खालिस है मेरी ये फनकारी सीधे दिल की छुवन बनती है

कोई आसान काम का नही है आँशुओ को शेरों में पिरोना, जो
कलेजा निकाल के कागज पे रखते है तो एक ग़ज़ल बनती है

न जाने कितनी बार सांचे में काटा जाता है इनके धागों को
कच्चे सूतो की लड़िया उसके बाद ही रेशमी पैरहन बनती है

आसान नही है बेवफाई का ये हुनर बस यूँ ही सीख लेना
हज़ारो खवाब जलते है तब जाके एक वादा सिकन बनती है

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