समुन्दर ले आओ

एक दो घूंट नही पूरा दरिया  इसके अंदर ले आओ
मेरे खाली  पैमाने में भरने सारा  समुन्दर ले आओ

इन संतरो के छिलकों  से मेरी आँखें बंद नही होंगी
गर मुझे मात देना है तो सो रहा सिकन्दर ले आओ

क्या हुआ मेरे सामने तलवार उठाने की जुर्रत नही
शायद जीत जाओगे दोस्त बनकर खंजर ले आओ

ये सर्कस के शेर है चाबुक की आवाज से चलते है
इन्हें काबू में अगर करना है तो एक हंटर ले आओ

सबके  मुह पर सच्चाई कहने  वाली आदत छोड़ दो
आज के दौर में रंग बदलने वाला कलन्दर ले आओ

सहिबेमसनदी है तुम्हारे  पास संजीदगी से चलाओ
गर गुलाटियां मारनी है तो तख्त पे बन्दर ले आओ






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