फूलों के मौसम
फूलों के मौसम में भी ये वीरान लगता है
घर मेरा मुझको बहुत सुनसान लगता है
जब से तन्हा किया है तुमने मेरे दिल को
हर जानने वाला मुझको अंजान लगता है
खुदा से भी नही मिट सकता इसका दर्द
दिल मेरा इस कदर लहूलुहान लगता है
दिल का इशारा एक भी नही समझता
मेरा सनम मुझको बड़ा नादान लगता है
जब भी उससे दिल लगाया,जला हूँ मैं
ये प्यार भी गमो का खादान लगता है
सीने की खलाश भरती ही नही, और
बारिस में भी ये दर रेगिस्तान लगता है
जिसको मोहब्बत की इक बूंद न मिली
ये जीवन मेरा वही खलियान लगता है
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