मोहब्बत की दौलत
ना बादशाहो को नसीब होती है ना अमीरों को नसीब होती है
मोहब्बत की दौलत तो सिर्फ कुछ फकीरो को नसीब होती है
जाने कितने आस लगाये है, इस दरिया में डूब जाने की,पर
बदनामी की ये आग तो बस कुछ शरीफो को नसीब होती है
सारे के सारे खुशियों के मिसरे शायरी के हिस्से में आ जाते है
और गम की रागिनी तो बस कुछ लतीफ़ों को नसीब होती है
जो अमीर है उनके तो दिन और रात बहुत बेचैनी से कटते है
और सुकूँ की ये दौलत तो इन सारे गरीबो को नसीब होती है
जमाने भर की खुशियों की तारीफ तो नसीबो को मिलती है
और गम की सारी ठास हाथो के लकीरों को नसीब होती है
बेग़ैरतो की झोली दौलत और शोहरत से भरी हुई दिखती है
जमाने भर की सारी गरीबी जिंदा जामीरों को नसीब होती है
अमन चैन की सारी ठंडी जंगलो के हिस्से में चली जाती है
और मजहबी नफरत की आग सब कबीलो को नसीब होती है
जमाने भर से दिल्लगी कर जे तो आपने अब देख ही लिया है
पर आपकी बेरुखी बस हम दिल के मरीजो को नसीब होती है
अमावश की हर रात हम आसमान में जिसका इंतेज़ार करते है
जाने क्यों उस चाँद की रोशनी सिर्फ रक़ीबों को नसीब होती है
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