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Showing posts from September, 2021

समुन्दर ले आओ

हिमाकत कौन करेगा

एक रागिनी

रेपरिज्म

रिप्रिजम है ये

हुनरमंद

कलम और तलवार है तू

उसके आने की जब बात चले

मेरा पैमाना

कैसी ये प्यास है

जगाने आया हूँ

जो आज मेरे नाम है

काश ये हो जाता

गर्म लहू के छीटे

फूलों के मौसम

चिरागों की तरह

हिम्मत मेरी

हारे हुए सिकंदर

जुल्फो की छांव

अच्छा नही लगता

चाँद को पाने की जुर्रत नही है

वो भुलाने लगे

मोहब्बत की दौलत

लड़ना होगा

बहरों को सुनाना है तो जरा जोर से बोलना सीखो