तलाश
तुम घरों की तलाश में हो मैं शहर लिख रहा हूँ
खोज रहे हो जिसको मैं वो नज़र लिख रहा हूँ
सादे दिल पर सुखन के कुछ बहर लिख रहा हूँ
आधी रात में आसमा पे नया सहर लिख रहा हूँ
ग़ुलामी के हाल में बगावत का दहर लिख रहा हूँ
कहो चिरागों से इनकी लौ पे महर लिख रहा हूँ
तुम एक दो पल का अक्स बनाने में तंग हो गए
मैं तो कोरे कागज पर आठो पहर लिख रहा हूँ
बड़े बेचैन बने घूम रहे हो इस शहर में दर बदर
बसा लो जिसे सुकून से ऐसा घर लिख रहा हूँ
तुम तरसते रहे तमाम उम्र एक मिसरे के लिए
मैं तुम्हारी आँखों पर पूरी ग़ज़ल लिख रहा हूँ
तू लिखता रह इश्क़ के नगमे और जुदाई के गीत
मैं इस कलम से इंकलाब की लहर लिख रहा हूँ
तेरा तख्त हटा देगी तुझे शाह से फकीर बना देगी
पलट देगी सल्तनत को मैं ऐसा गदर लिख रहा हूँ
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