वो नाराज है
अब इनसे भी नही आती नही कोई आवाज है
जब से रूठी हुई है वो रूठा हुआ हर साज है
इस हवा से बुझ गया मेरे दिल का चिराग है
लगता है वो नाराज है
लगता है जैसे ये चाँद अमावश में खोया है
जैसे सूरज अपनी आँखे बंद करके सोया है
बिखरा बिखरा शायद ये उसका मिजाज है
लगता है वो नाराज है
नदियों ने सागर से मिलना जाने क्यू छोड़ा है
मेरे बाग का ये खिलता फूल किसने तोड़ा है
रुसवाइयों का खुदा जाने कैसा ये रिवाज है
लगता है वो नाराज है
चमन में फूल भी अब नहीं कोई खिलते है
वादा करके भी अब वो मुझसे कहाँ मिलते है
क्यों इन जख्मो का मिलता नही इलाज है
लगता है वो नाराज है
अपना भी मेरा मुझको अब बेगाना लगता है
ये फूलों का मौसम भी अब वीराना लगता है
जाने क्यों चूका अब दिल का हर आमाज है
लगता है वो नाराज है
मेरे सारे शहर में खामोशी सी एक छायी है
मेरे बाग की सारी कालिया भी मुरझायी है
भवरों ने भी छोड़ा अपना सारा कामकाज है
लगता है वो नाराज है
देखकर मुझे वो पहले सी नही मुस्कुराती है
वो आती है और मुझको देखकर मुड़ जाती है
रब ही जाने उनकी खामोशी का क्या राज है
लगता है वो नाराज है
क्या करूँ मैं मुझको वो कुछ बताती नही है
सवाल हजारो है दिल मे पर जताती नही है
अपनी शोख अदा पर उसको बड़ा नाज़ है
लगता है वो नाराज है
वो खामोशी अब भी बहुत कुछ बताती है
मौसम की नई बहार मुझसे क्यो छुपाती है
शाख पर बैठी कोयल भी अब बेआवाज है
लगता है वो नाराज है
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