हुकूमत की सियासत

जिनसे मोहब्बत है ये उनसे भी नफरत कराती है
घर के तिजोरी की लूट अक्सर हुकूमत कराती है

कोई दोष ही नही है इसमें तो मंदिर मस्जिद का
भाइयो में मजहबी बैर तो ये सियासत कराती है 

सियासतदानों की फिदरत का ऐतबार ना करना
इनकी सोहबत अपनो से भी  बगावत कराती है

ये कुर्सी इन नेताओं से क्या क्या खेल कराती है
दोस्तो से बैर तो दुश्मनों से भी इबादत कराती है

जरा संभल कर रहना इस मुल्क के ठेकेदारों से
इनकी झूठी वतनपरस्ती बड़ी फजीहत कराती है

मोहब्बत जो नही हुई किसी से तो बेचैनी देती है
जो हो गयी तो सारे जमाने मे कबाहत कराती है

कभी अपनो से लड़ाई तो कभी नफरत कराती है
घर मे बंटवारा चोरियों से बनी विरासत कराती है

ताजो तख्त की चमक भी बड़ी करामाती होती है
बनिये तो छोड़ो ये फकीरों से तिजारत कराती है

फकीर तेरी शख्शियत की तारीफें बहुत सुनी है
ये जहाँ गयी है वहा मुल्क की मलामत कराती है

मोहब्बत जब रंग लाती है तो बड़े रंग दिखाती है
जग से ही नही ये खुदा से भी खिलाफत कराती है

जब तक उनको इश्क़ है तब तक ये चुप रहती है
वरना मोहब्बत जाने क्या क्या हिमाकत कराती है

एकतरफा मोहब्बत की अपनी फनकारी होती है
मिली तो जराफत,न मिली तो कयामत कराती है


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