सरेआम
कभी छुपा कर लिख दूंगा कभी सरेआम लिख दूँगा
दीवारों दरख़्त पे तेरे इश्क़ का मैं एलान लिख दूंगा
बेआबरू हो जाओगे तुम जो निकलोगे सड़को पर
मैं शहर के एक एक घर पर तुम्हारा नाम लिख दूंगा
जो तूम सीता बनो तो मैं सावरां श्री राम लिख दूंगा
जो तुम मीरा बनो तो मैं ग़ज़लों में श्याम लिख दूंगा
मेरे ही खयालो में रहोगे बस मेरी ही बाते करोगे
मैं तुम्हारे जहन में सिर्फ यही एक काम लिख दूंगा
जो तुम मुस्कुरा कर देख लो बस एक बार मेरी ओर
तेरे नाम दिल तो क्या ये दिन सुबह शाम लिख दूंगा
वैसे तो ये अनमोल है इसका कही कोई मोल नही
जो तू बाजार में आये तो मैं दिल का दाम लिख दूंगा
तुम दो पल ही सही साथ तो चलो कदम मिलाकर
उस लम्हे को जिंदगी के सफर का इंजाम लिख दूँगा
जब गुज़रोगी तूम इस शहर की किसी भी रास्ते से
मैं उन रास्तो के हर जर्रे पे अपना सलाम लिख दूंगा
जमाना इश्क़ की कसमें खाएगा अपना नाम लेकर
तुम साथ दो तो मैं मोहब्बत में वो मकाम लिख दूंगा
Comments
Post a Comment