राधा मीरा

राधा और मीरा दोनो ही कान्हा की दीवानी बनी, मुरली कि तान से दोनों ही बौराय रही है
एक हृदय की महारानी और एक चरणों की दासी दोनो ही कान्हा को प्रेम से रिझाय रही है
मीरा का मन मनमोहन की मूरत में खोया, तो राधा रानी रास रचयिता संग रास रचाय रही है
प्रेम में ऐसी दीवानी दोनो पगली भईं, एक गोकुल में निहारे एक मन मे कान्हा को पाय रही है


मीरा मतवारी हुई पगली दीवानी जो राधा दिन रात मनमोहन की राह को निहारती है
मीरा घूमे ग़ली और भटके है दर दर, तो राधा यमुना तट पर कान्हा से मिलन को आती है
चरणों की दासी बन प्रभु को पूजती है मीरा तो राधा कान्हा की छवि हिय में बसाती है
राधा खोजे कान्हा कान्हा ब्रिज में जो मीरा उसी मनमोहन को निज मन मे समाती है


लाल लाल बिंदिया लगा सज गयी राधिका जो मीरा जोगन बनी दासी का धर्म निभाती है
सोलह श्रृंगार किये राधा कृष्णा को लुभाये जो मीरा प्रेम की खातिर विष प्याला पी जाती है
किसका है प्रेम कान्हा के लिए कितना सशक्त, इसे परख सके जो कौन इतना ज्ञानी है
दोनो ने मोहन पर महलो का सुख त्यागा और दोनो लोक लाज त्याग जरा भी न लजाती है


मीरा ने जो विष वाला प्याला पिया तो राधा नित तानों के तीर सीने पर खाती है
घर बार परिवार छोड़ मीरा बैरागन बनी जो राधा कान्हा नाम की धूनी को रमाती है
मीरा और राधा दोनो एक ही बिरह की मारी, दोनो कान्हा की याद में दिन रैन बिताती है
एक कान्हा कान्हा कह जमुना के घाट पे खोजे तो दूजी कान्हा का नाम ले विष पी जाती है

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