लोरिक

सकल विश्व प्रणेता कौन हुआ
वीर लोरिक सा विजेता कौन हुआ
कौन हुआ जिसने चट्टानों को फाड़ा
अति वीर बलशाली सुचेता कौन हुआ


थी अतुलित बलित भुजाएं प्रखर
तेज सूर्य का मस्तक पर था निखर
वक्ष स्थल विशाल धरा से प्रबल
वीर भावना से भरा मन था प्रसर


ललाट पर जिसके तिलक सुहाती थी
लोरिक को देख विजय लुभाती थी
माँगर पर चढ़ जब लोरिक था दहाड़ता 
गर्जना शत्रु को मौत का दृश्य दिखाती थी


भेद दिया उसने अभेद अगोरी किला
उद्धारा प्रजा  मोलागत से मुक्ति दिला
काटा खड्ग से जाने कितने मस्तक 
दिया नरमुंडों का पर्वत नारगढ़वा में बना


वीर की प्रेम कहानी पर्वत बताते है
मारकुंडी की घाटी शौर्यता दिखाते है
माँ काली का उपासक वो वीर था 
ईश्वर विरले ही लोरिक सा वीर बनाते है


बिजली सी ताकत जिसके कृपाण में
शौर्य जिसका था विनास एवं निर्माण में
ईश्वर ने नही बनाया कोई उस वीर जैसा
हार दे उसे ऐसा क्षण नही लिखा विधान में


पौरुष बल युक्त भुजाये थी अति सबल
 देता था जो स्वंय काल को निर्बल
रणभेरी बजा जब लोरिक युद्ध मे आता
शत्रु दल सारे का हृदय जाता था दहल


उष्ण से जिसके तेज पाती थी पावक
माँगर अश्व  उसका तीव्र गति धावक
एक  वार में चीरती थी पर्वत का सीना
खड्ग बिजरी था शक्ति को वो पालक


था लोरिक योद्धा बलशाली अति वीर
देख जिसे काल भी हो उठता अधीर
प्रेम की निशानी है पर्वत माला समेटे हुए
प्रेम में एक वार से उसने पर्वत किया क्षीण



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