गीतकार

हमको मालूम है शहर के लोग 

हमको गीतकार नही मानेंगे
कलम पे अधिकार नही मानेंगे
फनकारों की फेरहिस्त में ये हमे शुमार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे

लड़ेंगे तब तक  कि टूट न जाये
जिंदगी इन हाथों से छूट न जाये
पालेंगे जिल्लत की आग सीने में
जब तक की लावा फुट न जाये
हमारे साथ किया बराबरी वाला करार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे

जहां गया  तुने पाशे खूब बिछाए
बदनामी के ढोल भी खूब बजाए
तैयारी की तो थी फ़ूलों की मैंने
मगर राहों में काँटे भी खूब बिछाए
हमारी लिखी पढ़कर हमे ही कलमगार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे

वारो से सीना ये फटता ही नही
तलवारों से गला कटता ही नही
जाने कितने कांटो को चुभोये 
कदम ये पीछे तो हटता ही नही
ये सारे अंधे बहरे जमाती हमे फनकार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे

सब बातें दिल मे चुभती है पल पल
हिलोंरे आंखों से  उठती है पल पल
उठ अब नयी सी कोई कारीगरी कर
टूटती कलम मुझे कहती है पल पल
गुरूर से बेबस ये लोग हमें लफ्जगार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे

जलालत की घूंट वो  खूब  पिलायेंगे
कदम कदम पर ठोकर भी खिलाएंगे
कामयाबी हमारी खुद के नाम करके
नाकामी की तोहमतें भी खूब लगाएंगे
बेसहुर ये सारे के सारे हमें हुनरदार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे


हमको मालूम है शहर के लोग 

हमको गीतकार नही मानेंगे
कलम पे अधिकार नही मानेंगे
फनकारों की फेरहिस्त में ये हमे शुमार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे
हम फिर भी हार नही मानेंगे

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