अजल सल्तनत
बने फिरते हो खुशमिज़ाज़ फिर इस सीने में ये मर्ज क्यो है
बड़ी गर्मजोशी है तेरे मिलने में फिर ये अंदाजे सर्द क्यो
है
बेतकल्लुफ होकर मुलाकातों का एक वादा भी था तुम्हारा
फिर ये मिलने मिलाने के रिवाजो में रिश्तों की शर्त क्यो है
कोई अफसोस ना करने का एक दावा था बिछड़ने पर भी
अब न जाने क्यों सीने के किसी कोने में एक दर्द क्यो
है
दिल खोलकर एक दूसरे को सब बताने का करार हुआ था
तुम्हारे अंदर दफन ये राज समंदर से भी ज्यादा गर्त क्यो है
एक नूर छुपा रहता था तुम्हारे सारे अंदाज ए बयान
में
इन आंखों की जगह तुम्हारे लहजे में कत्ल ए बर्क क्यो है
वादों का पिटारा दिखाकर हमको तुमने ये वजीरी पाई
है
अब इनकी कसौटी पर तुम्हे आंखे मिलाने से हर्ज़ क्यो
है
बेशर्त हमने बैनामा कर दिया अपने मुकद्दर का तेरे नाम पर
फिर भी दिलों के लेन देन मे तुम्हारी ये आदत ऐ नर्द क्यों है
दावेदारी तो थी तेरी ईमानदारी की नई इबारत लिखने
की
फिर बता तेरे शहर के हर शख्स मे नियत ए गर्द क्यों
है
बहुत चर्चे सुने थे मैंने तुम्हारी दी हुई जुबाँ के कीमत की भी
फिर सहिबेमसनद आपकी वजीरी में ये फेर ए वर्द क्यों
है
सुना था दरियाओं की सारी तलब तेरे पैमाने से मिटती है
तुम्हारे आलीशान महल के आंगन में ये प्यासा कर्द क्यो है
हसीन और आसान सी होती है मोहब्बत की सारी जुबान
फिर मेरे साथ किया हुआ इजहारे इश्क़ इतना फर्द क्यों है
शराफत की चमक शफ़क़ ए सूरज जैसी लाल होती
है
अमलन जो तू शरीफ है तो तेरा चेहरा इतना जर्द क्यों
हैं
अजल से भरी तेरी सल्तनत जम्हूरियत का लिबास ओढ़े है
फिर बेलौस के बुरखे वाला तेरा ज़मीर इतना बेपर्द क्यों है
तेरी तखरीरो में खूब जिकर हुआ करता था इत्तिहादो का
फिर तुम्हारे सारे हिमायतियों की खुद ही में ये नबर्द क्यों है
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