भूख
तिरस्कारा गया हूं कभी तो कभी भूख से रोया हूँ
कभी छत नही मिली कभी बिना खाट के सोया हूँ
चल चल कर जाने इन पैरों पर पड़ गए कितने छाले
कंधे टूट गए फिर भी हर बोझ को इन्ही पर ढोया हूँ
जो पेट की आग बुझी नही तो गम पी कर रह गए
गरीबी का वो धब्बा मैं अपने आँशुओ से धोया हूँ
लड़ा हूँ बहुत गिरा हूँ बहुत,फिर भी उठ कर चला हूँ
मेहनत से अपने खुशियों के कुछ नए बीज बोया हूँ
यूँ ही नही पड़ी है इस गले मे कामयाबी की ये माला
खुशियों की एक एक मोती बड़ी लगन से पिरोया हूँ
बिना कुर्बानी के कभी मिलती नही शान ओ शौकत
इस शोहरत के पीछे जाने कितनी खुशियां खोया हूँ
मत सोच की तोहफे में मिला ये आलीशान मकान
एक छत के लिए सालों खुदको बारिस में भिगोया हूँ
भूख ने बस मेहनत को जाना तब ये मुकाम आया
सिर्फ दुआओं से ही नही आंखों में ख्वाब संजोया हूँ
दुनियादारी के सागर में तैरने का हुनर यूँ ही नही आया
इनसे पार पाने को जाने कितने अरमानो को डुबोया हूँ
दूसरों के कंधे पे चढ़कर रईसी का समंदर नही बना
मेहनत से खुद का अस्तित्व बनाता एक करतोया हूँ
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