मोड़
किसी मोड़ पर कही न कही, मंजिल मेरी भी होगी
उजाले भरे होंगे सफर में मगर राहे अंधेरी भी होंगी
चल पड़े है जो तो फिर मेरा मुकाम आ ही जायेगा
सब जीत ही क्यो मिले ,कुछ हार जरूरी भी होगी
जिंदगी के शय और मात की हकीकत हम जानते है
अगर जो जीत बड़ी मिली ,तो हार करारी भी होगी
नजदीक आने, दूर जाने का फलसफा ऐसा है कि
कुछ गैर जो पास आएंगे तो अपनो से दूरी भी होगी
इश्क़ में सब कुछ हार जाने का गम क्यो मनाए हम
ये सब तेरी मर्जी नही कुछ खुदा की मंजूरी भी होगी
कैसे बेवफा कह दूं उसे,जो बनी है वो गैर कि दुल्हन
घूंघट की आहें बता रही है कुछ उसकी मजबूरी भी होगी
मोहब्बत हर किसी के किस्से मुकाम तक नही पहुचाती
अगर कुछ कहानियां मुकम्मल तो कुछ अधूरी भी होंगी
मत कर दावेदारी सिर्फ अपनी खुदा की खुदाई पर
खुदा के दर की हिस्सेदारी कुछ तेरी तो कुछ मेरी भी होगी
तरस आता है मुझे वजीर तेरे तानाशाही फरमान पर
तुझे कुछ अकेलापन तो कुछ मनमर्जी की बीमारी भी है
ये जो तुम्हारा हाथ किसी और के हाथों में सजा हुआ है
वफ़ा का सिला नही वादों को निभाने की मजदूरी भी है
सुना है पुरा शहर उसकी मोहब्बत के कसमे खाता है
उसकी वफ़ा पर सबकी अपनी अपनी दावेदारी भी है
ख़ुदा के नाम के पीछे की बदनीयति हम समझते है
तबाही ये उसकी मर्जी ही नही,थोड़ी सरकारी भी है
जब सब कुछ हार गए इश्क़ में तब हमें ये समझ में आया
सब रकीब की किस्मत नही कुछ अपनो की गद्दारी भी है
ये जो तेरी शानदार हवेली की चमक आंखों में आई है
सब तेरी मेहनत ही नही मामला थोड़ा चमत्कारी भी है
साहेब की महफ़िल के वजीरों का फैसला मिलावटी है
सारे जमीरदार ही नही कुछ साहेबान थोड़े दरबारी भी है
बड़े चर्चे है इस पूरे जहान में साहेब की मनमानी के
ये तानाशाह सिर्फ मगरूर ही नही अत्याचारी भी है
Comments
Post a Comment