इंकलाबी आवाज

जर्रे जर्रे से अब ये इंकलाबी आवाज आनी चाहिए
नारो की ध्वनि बहरों के कानों तलक जानी चाहिए

मिटा दे जो कंस सरीखे अत्याचारियों के राज को
गगन को फिर से एक आकाशवाणी सुनानी चाहिए

छलनी कर दे पापियों का सीना अपने एक वार से
धनुर्धर अर्जुन को फिर एक गांडीव उठानी चाहिए

अधर्मियों पर धर्म के विजय की शुरुआत के लिए
कृष्ण को फिर से पदम् की गर्जना बजानी चहिये

विचारों का उबाल काफी नही तानाशाहों के लिए
सबके दिलों में क्रांति की अब सुनामी लानी चाहिए

बहुत हो चुका सम्मान के नाम पर खामोशी साधना
अब हर गली से इंकलाबी आवाज निकलनी चाहिये

बैठ गए जो राज सिंहासनों पर अधिनायक बन कर
उखाड़ दे जो इनअधिनायकों को ऐसा प्राणी चाहिए

थके जो शांति अहिंसा का पाठ पढ़ाते शत्रु को अब
माँ भारती की लाज हेतु नरमुंडों की कुर्बानी चाहिए

प्रण लिया  जो तूने मातृभूमि की अस्मत बचाने को
निज वचन को आखिरी सांस तक निभानी चाहिए

अत्याचारों से हार कर कब तक असहाय बन बैठोगे
स्वत्र नाश करे पापियों का ऐसी एक जवानी चाहिए

हाहाकार मचा है जग मेंअन्यायियों का है बोलबाला
अब  महिषासुर  मर्दन के  लिए  दुर्गा भवानी चाहिए

महाराणा प्रताप सा शौर्य छत्रपति सा युद्ध कौशल
वीरता को अब वीरगति की एक ऐसी कहानी चाहिए

धरा सिसक रही है कांपते आसमान के आंचल तले
दंडविधान में पापियों की अंतिम तारीख लिखानी चाहिए

जाति पाति के बोझ तले इंसानियत है बिलख रही
ऊंच नीच से परे महावीर कर्ण सा एक दानी चाहिए

छल कपट के विकृतो को कूटनीति सिखाने के लिए
चोटी वाले चाणक्य समान कोई एक विद्वानी चाहिए

घमंडी क्षत्रियों का जिसने परसु से संहार किया
विश्व को परशुराम सा अब कोई वीर सानी चाहिए

हँसते हँसते जो मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर कर गए
क्रांति की लौ जगाने को भगत सा स्वाभिमानी चाहिए















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