रिश्तों की मंडी
कही कहाई है ये बाते सारी, सुने सुनाये अफसाने है
रिश्तों की मंडी में कुछ अपने तो कुछ आये बेगाने है
मेरी ग़ज़ल के अपने काफिये ,इसके अपने तराने है
सच इसके मिसरे है बाकी सब सुने सुनाए फसाने है
बनने बिगड़ने के सिलसिला तो यूँ ही चलता रहेगा जोअपनो से रिश्ते टूटे कुछ बेगानो से रिश्ते बनाने है
टूट गयी उम्मीदे सारी लेकिन हौसले अभी बाकी है
आंधिया जिन्हें उजाड़ गयी वो घर फिर से बसाने है
तेरी बूंद बूंद के प्यासे मैखाने के भरोसे नही बैठा मैं
समंदर से भी गहरे मेरे जाम के और भी ठिकाने है
अपने खम की आजमाइश मुझसे न करना हवाओ
अभी तेरा रुख मोड़ा है, अभी तेरे हौसले झुकाने है
अभी तो सिर्फ ज़फर की सिर्फ आहट आयी है यहाँ
अभी तो फतह के हज़ारों तिलक माथे पर लगाने है
अपनी शख्शियत की चादर बुन कर रख लेना तुम
बेपर्दा हो गए है जो इनसे वो राज भी तो छुपाने है
उनकी हंसी पर मरने वालों उसका कोई कसूर नहीं
आखिर शमा क्याजाने कितने परवाने उसे जलाने है
यूँ मुलाकातो के ना होने का सबब हमे भी मालूम है
ये बरसात आंधिया तूफान सब सुने सुनाए बहाने है
तेरे दिए ये सारे के सारे जख्म आज मरहम बने मेरे
घावों को तो भर दिए अब उसके सारे दाग मिटाने है
अभी सफर शुरू किया अभी मंजिल पाना बाकी है
काँटे तो सारे चुन लिए रास्तो के सारे पत्थर हटाने है
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