प्रीतम की पाती

उद्धव के आने की आहट को सुनकर
आतुर गोपियां सारे गोकुल में विचरत है
बेसुध बेतहाश बन बाँवरी सी बृजबाला
पागल बन प्रीतम की पाती को परछत है

उद्धव के हाथन में कान्हा की पाती देख
गोपी मतवारी सारी मन मे ही मचलत है
किन किन का नाम लिखो है कान्हा इनमें
उतावली हो कर सारी उद्धव से पूछत है

आयी अच्छादित सी आकुल आर्या सब
प्रीतम की पतित पाती पर पुनीत पुरावत है
सखा को श्याम का साया समझ गोपी सारी
आपन स्नेह सबही उद्धव पर लुटावत है

व्यकुलता भरी रोम रोम में इतनी जो कि
आपस मे पाती की छीना झपटी करत है
आपन सन्देश पढन को भई उत्सुक गोपी
आपन आपन नाम देखे मे पाती फारत है

गोपियों की स्नेह देख उद्धव का हिय डोले
बाँवरी बनी राधा से मिलन को जाते है
देख राधा की व्याकुल सी हालत को
ज्ञानी उद्धव निरगुन ज्ञान को उचाते है

मानी अभिमानी बना ज्ञान पे जो फिरता था
अब राधा में किशन की मूरत निहारत है
विस्मित बन बैठा उद्धव भी तब जब
राधिका भी किशना के रूप को धारत है

राधिका की ये लीला देख भूल गया सब
उद्धव अब ब्रम्हा का ज्ञान सब भूलत है
आया था जो ज्ञानी विद्वानी बन ज्ञान देने
वो माया में फंस अज्ञानी बन झूलत है

ज्ञान न लिया राधा और गोपियों ने उद्धव से
उद्धव ही राधा कृष्ण की धूनी को रमाते है
प्रखण्ड विद्वान थे जो जग में निराकार के
वे उद्धव राधा किशन के गीत सारे गाते है

ऐसी महिमा थी राधिका के प्रेम की ब्रज में
गोकुल के कण कण में कान्हा ही समाते है
छोड़ राधिका को कान्हा कही भी गए नही
महिमा से प्रभु की अब उद्धव भी नहाते है

राधे राधे श्री राधे की माला जपते जपते
उद्धव निज पांव से ही मथुरा लौट आते है
मिलने जब जाते तो महल में कान्हा के तो
कन्हैया संग राधिका को महल में पाते है

नादानी भरा ज्ञान मिटा उद्धव का अब तो
भक्ति का मूल सार प्रभु उन्हें समझाते है
प्रेम ही भक्ति का रूप है एक प्रभु ने कहा
प्रेम में ही ईश्वर है ये उद्धव को बतलाते है






Comments

Popular Posts