सवाब
जमीं से पूछो आसमां से पूछो या चमकते आफताब से पूछो
मोहब्बत में गहरायी कितनी है,ये इस बहती चिनाब से पूछो
कोई दरिया डूबा न पाया किसी सोहनी के महिवाल को
हारे कितने बेआबरू होकर ये तो लहरों के रुआब से पूछो
सूरज से गर्मी तो तारो से चमकने का सबब क्या पूछना
इस महफ़िल में मेरी हैसियत तुम उसी हिसाब से पूछो
तेरी क़ुरबत मे रहने का सबब तो जन्नत के फरिश्ते बताएंगे
तेरे बालो में सजने की खुशी तो महकते हुए गुलाब से पूछो
मोहब्बत छूटने के अंजाम तो ये रोते हुए अश्क ही बताएंगे
दिल टूटने का सबब तो किसी बिखरते हुए ख़्वाब से पूछो
क्या नूर छुपा रखा है ये तो उसका आईना ही बता पायेगा
उस खूबसूरती का आलम तो चेहरा ढके हुए नकाब से पूछो
चमक उसके चेहरे की क्या है ये तो बेनूर सूरज ही बताएगा
कितना नशा है उन आंखे में ये बहकती हुई शराब से पूछो
कितने पागल हुए झंकार सुनकर ये उसकी पाजेब बताएगी
कितने घायल हुए एक झलक पर ये हुस्ने लाजवाब से पूछो
उसके हंसी का असर तो घर मे लगे आईने ही बता पाएंगे
क्या रुतबा है उसकी क़ुरबत का ये जन्नत के सवाब से पूछो।
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