1962 रेजांगला

सर्द नवंबर सन 19 सौ बाँसठ कि वो लड़ाई थी
जब चीनी चूहों ने भारतीय सिंहो पर की चढ़ाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

रेजांगला  की उस  पोस्ट पर  बैठे थे  वीर अहीर
थे जो अत्यंत निडर साहसी निर्भीक और अभीर
जय दादा किशन के नारों से ललकारे वो शूरवीर
वार जैसे गांडीव की प्रत्यंचा से छूटे अर्जुन के तीर
वीर अहीरो ने जाबांजी की फसल पुस्तों में उगाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

मुट्ठी भर पलटन थी शत्रु की रेजिमेंट थी विशाल
मृत्यु पसरी थी चारो ओर जीवन का था अकाल
मौत खींच लाई उनको या खींच लाया था काल
अहीरों ने जब हुंकार भरी तब शत्रु हुआ था बेहाल
मृत्यु शोक पर भारी उस दिन विजय की बधाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

वीर अहीरों ने वीरगति तक शत्रु से युद्ध किया
रक्त से नहा हिमालय की श्रृंखला शुद्ध किया
कण कण मिट्टी का बलिदानो से प्रबुद्ध किया
लाश बिछा अपनी शत्रु मार्ग को अवरुद्ध किया
मृत्यु का वह दृग दृश्य देख कांप उठी संघाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

शत्रु छल बल संग सीमा पर आकर बोला था
पर यादव वंश का हृदय तनिक  न डोला था
मौत की प्यासी आंखो में अंगारों का गोला था
उद्दंडता से शत्रु के दहका क्रोध का शोला था
श्रृंगी विनाश की उन वीरो ने क्या खूब बजायी थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

भोर किरण संग रेजांगला में गूंजे थे वो धमाके
रक्तरंजित हो चुके थे शैतान सिंह के वो लड़ाके
बिछी लाशें शत्रु सारे मृत्यु का आलिंगन झूल गए
व्याकुल चीनी नरमुंडों की गिनती करना भूल गए
घबराहट ही चीनियों की दुर्दशा की देती गवाही थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

रुकी थी सांसे पर गोलियों की बौछार ना रुकती थी
बलिदानी वो अहीरों के वारों की धार ना रूकती थी
प्रत्यक्ष अप्रत्यक्षो को मृत्यु आलिंगन में सिमटती थी
देख पराक्रम भारत के वीरो का वो दूर ठिठकती थी
झांकी यूँ थी जैसे धरती से मानो शत्रु की निराई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

भारत माँ के बेटे थे सौ पचास चीनी आये थे हज़ार
पास न थे अस्त्र शस्त्र अतुलित भुजाएं थी औजार
माँ के लाडले बहनों के  भाई खड़े थे मृत्यु के द्वार
मातृभूमि पर प्राण नौछवार करने लगाए थे कतार
चारो ओर गूंजती थी छींखे रो रही शत्रु की दुहाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

खत्म हुए जब आयुध सारे तब हाथों से मारा था
पटक पटक के पत्थरो पर मौत के घाट उतारा था
भयावह वो था वो दृश्य,शत्रु को जवाब करारा था
वीर अहीरों ने हर वार पर दादा किशन पुकारा था
शस्त्रों का युद्ध ख़त्म कर वीरो ने की हाथापाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

न कोई सुविधा और खतम हुए सारे हथियार थे
वीर अहीर प्राण गवाने को उसपर भी तैयार थे
मरने या मारने को फैसले उस दिन आरपार थे
मौत दुल्हन बनी शरीर के घाव सारे अलंकार थे
माँ के वीरो ने क्या खूब मृत्यु की सेज सजाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

अंतिम व्यक्ति अंतिम प्राण था  अंतिम धार का
रेजांगला में लड़ा वो युद्ध था  अंतिम प्रहार का
बाहुबल भुजाओं में वही वीरो का हथियार था
एक एक योद्धा  चीनियों का अंतिम संहार था
वीरगति की वो राह अहीरो ने स्वयं बनाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

युद्ध ऐसा लड़ा जो फिर कभी नही जैसा लड़ा
दुश्मन का शीश काट वीरगति को आगे बढ़ा
रक्त की प्यासी रणचंडी को अपना रक्त पिला
पराक्रम दिखा हिमालय पर दिया दुश्मन को झुका
वीरता वही चमकौर सी वीर अहीरो ने दोहराई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

हारी चीनी सेना, जाबांजो ने ऐसा बलिदान दिया
सौ ने तीन हज़ार को मौत की गोंद में दान दिया
बेटो के पराक्रम पर भारत माँ ने अभिमान किया
वीर अहीरों की वीरता को चीनी ने भी सम्मान दिया
वीरता की छाप दुश्मनों के दिल पर भी छपाई थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

धन्य धन्य है भारत माता धन्य है अहीरो का टोला
मातृभूमि पर जान लुटाने को सबका दिल था डोला
एक इंच न भूमि छोड़ी मृत्यु के लिए बाहुपाश खोला
भारत माँ की शान  बचाते मृत्यु  गोंद  बनी हिंडोला
वीर अहीरो की वीरता पर विजय बनी अनुनायी थी
रेजांगला में उस दिन रणचंडी ने ली अंगड़ाई थी
बेटों को विजय तिलक लगाने खुद मृत्यु आयी थी

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