कभी कफा मांगता हूं
कभी कफा मांगता हूं तो कभी सजा मांगता हूँ,
मेरे फरिश्ते मैं बस अपने लिए क़ज़ा मांगता हूं।
दोस्तो से निभा निभा कर थक गया हूँ बावरें,
मैं अब अपने दुश्मनो के लिए दुआ मांगता हूं।
अब थक गया हूँ दुनियादारी के आशियाने में,
मैं शहरे ख़ामोशा में बस एक मकाँ मांगता हूं।
आसमाँ मेरे कश्कोल में भी थोड़ी इनायत दे,
मैं बस तेरे बादलों से थोड़ा धुंआ माँगता हूँ।
जिस बाजार में आना जाना है उनका,मेरे खुदा
मैं उस शहर में अपने लिए आशियां माँगता हूँ।
मेरी ख्वाहिश है घर के बीच मे लकीरें न आये,
मेरे मालिक मैं तुझसे बस इतनी दुआ माँगता हूँ।
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