मेरे शहर मैं अब तुझसे जुदा होने को हूँ।

जो मेरे अपने है  उनसे खफा होने को हूँ,
मेरे शहर मैं अब तुझसे जुदा  होने को हूँ।

जिन मुसाफिरों को मैने  रास्ता बताया है,
अब उन्ही के शहर में लापता होने को हूँ।

शहर ए ख़ामोशा में मुझको भी दावा दो,
मैं भी अब  सुपुर्द ए  क़ज़ा  होने  जो  हूँ।

दोस्तो ने कुछ यूँ दोस्ती निभाई मेरे साथ,
कि  मैं अब  दुश्मनो का सगा होने को हूँ।

जिक्र ए यार भी अब रह रह के  होता है,
लगता है मैं एक कैद से रिहा होने को हूँ।

तुम्हारी वफ़ाई से वहसत में आने लगा हूँ,
संभालो मुझे,शायद मैं बेवफा होने को हूँ।

खौफ ए क़ज़ा मेरे जिस्म से कुछ यूँ गयी,
दर्द सहते सहते मैं खुद  दवा होने  को हूँ।

ये पत्थर,काँटे,अंगारे सब जानते है मुझे,
यारो अब मैं  इनमे ही  फना होने  को हूँ।

पत्ता पत्ता बूटा बूटा जो सब कुछ लुटा दे,
मैं अब वही मुस्कुराती  हिना होने  को हूँ।

कैद रखा सीने में आग अब तक जितनो ने,
जरा संभलो मैं उन सबकी जुबां होने को हूँ।


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