घर जाने को जी चाहता है

दरिया ए ज़ख़्ख़ार में उतर जाने को जी चाहता है
हर  महफ़िल  से  निकल  जाने को जी  चाहता है

इस शहर में सुकूँ तलाश कर थक गया  हूँ गमीन
अब तो  बस अपने  घर  जाने को जी  चाहता है

एक हवा की तरह रंगों को समेटे चलता था यहां
पर  अब तो सिर्फ बिखर जाने  को जी चाहता है

मैं थक गया हूँ रौनक रोशनी से भरी हवेलियों में
अब तो बस नाफ़ ए शहर जाने को जी चाहता है

सैकड़ो दिलो के चक्कर लगा कर थक गया है तू
मेरे दिल अब बता  किधर जाने को जी चाहता है

जाम मैखाना रिन्द पैमाना जब सब है मेंरे सामने
फिर  ना जाने  क्यों सुधर जाने को जी चाहता है

सुकून मिला है रूहों को जिस शहर ए ख़ामोशा में
उसी बाग में मेरा भी ठहर जाने को जी चाहता है

दुनिया ने ऐसी शर्तो पर हमें जिंदा रखा है साकी
की अब बस इनपे ही मर जाने को जी चाहता है

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