बारिस बनके आयी है

बिना मौषम  आज  ये  क्यो  भिगाने आयी  है
ये बरसात अब किस शहर को डुबाने आयी है

उसके शहर में आया हूँ एक एक रात के लिए
शायद वो बारिस के संग मुझको छूने आयी है

क्या हुआ अगर वो मशगूल है मशरूफियत मे
वो बारिस बनके अपना वादा निभाने आयी है

इब्तिदा-ए-इश्क़ का जरा जोर तो देख बावरें
वो किसी की होके भी मुझे अपना बनाने आयी है

बज़्म ए मोहब्बत रौनक रहेगी उसके नाम से
मेरी मुफलिशी का चिराग वो बुझाने आयी है




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