बादल बेमौसम बरस गया

बे  मौसम  आज  फिर  से  ये  बादल  बरस  गया है,
कोई  इन  दरख्तों  पर सिर रख कर सिसक गया है।

जिसको पहली बरसात समझकर तुम भीग रही हो,
पगली वो मेरी आंखों का आंशू है जो छलक गया है 

तुम तो कहती थी  कोई किसी के बिना मरता नही,
फिर क्यो तुम्हारे जाने के बाद वक़्त ठिठक गया है।

देखो  न  लोग  कैसे  कैसे  दीवाने  हुए  जा रहे है,
संभलो  इसको जो  तुम्हारा  आँचल सरक गया है। 

हर जर्रा हर कोना तुम्हारी खुशबू से महक गया है,
जब नजर मिलाई तुमने, दिल थोड़ा बहक गया है।

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