बाजार

कपड़ो के बाजार में अब सिर्फ कफ़न बिक रहा है
नक्कारो और निकम्मो के हाथों वतन बिक रहा है
कभी अपने गुलशन से जिसने पूरी दुनिया महकाई
चोरों की बाजार में अब वो मेरा चमन बिक रहा है

अपनी जिस खूबी पर नाज़ था हर हिन्द वासी को
दंगाइयों की महफ़िल में अब वो अमन बिक रहा है


जम्हूरियत का सबसे ऊंचा परचम लहराते रहे हम
और हमारे मुल्क की सड़कों पर दमन दिख रहा है


जमीर,  रूह,  ईमान, ये तो पहले ही बिक चुके थे
अब तेरे वोटो की मंडी में मुर्दो का तन बिक रहा है


वो जमाने गए जब बाते ईमान की हुआ करती थी
अब सिर्फ मक्कारी बेईमानी का फन बिक रहा है


अखबारो की सुर्खियां पहले ही हुक्म की गुलाम थी
अब इन  बाज़ारो में  शायरों का सुखन बिक रहा है


जमीन बिक गयी घर बिक गया तुम ख़ामोशा रहे
अब तो बचाओ माँ के हाथों का कंगन बिक रहा है



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