अय्याशी

सारी दौलत उड़ाके अय्याशी में हिसाब मांग रहे हो
शहर के सारे मदरसे जलाकर किताब मांग रहे हो
हाँथो से अमन की लौ जलाने की कोशिश है तेरी
अजीब सौदागर हो नींदे उड़ाके ख्वाब मांग रहे हो


आगोश में ख़ामोशी समेटे आफताब मांग रहे हो
बुतों के नवाब से सवालो के जवाब मांग रहे हो


शहर में बदनाम चेहरे के लिए नकाब मांग रहे हो
सब कुछ बेपर्दा  हो गया तो हिजाब मांग रहे हो


ये पैमाना जाम से खाली होने का सबब पूछते हो 
शहर के सारे मैखाने उजाड़कर शराब मांग रहे हो


बड़ी उम्मीद है तुम्हे इस सजी सजाई महफ़िल से
दो चार शाबाशी क्या दी तुम्हे खिताब मांग रहे हो


कहाँ उम्मीद लगाए बैठे हो किससे आस लगाए हो
जो साधुओं की बस्ती में आकर शबाब मांग रहे हो


बड़े नादान हो तुम यहाँ का चलन नही जानते
जो काँटो के शहर में आकर गुलाब मांग रहे हो













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